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चीन लिथियम बैटरी का सबसे बड़ा उत्पादक ,क्या मुश्कल में पड़ सकता है भारत

चीन लिथियम बैटरी का सबसे बड़ा उत्पादक ,क्या मुश्कल में पड़ सकता है भारत  



बीते 1 साल में लिथियम में 4 गुना बढ़ोतरी दर्ज की गई, लकड़ी से भी हल्की इस धातु के बिना इलेक्ट्रिक कारें नहीं बनाई जा सकती क्योंकि इलेक्ट्रिक कार बैटरी से ही चलती है | बैटरी जिस को बार-बार चार्ज और डिस्चार्ज किया जाता है,कारों के अलावा लिथियम बैटरी मोबाइल फोन लैपटॉप इलेक्ट्रिक बाइक इलेक्ट्रिक साइकिल और आने वाले समय में ग्रीन एनर्जी को स्टोर करने के लिए भी लिथियम बैटरी का ही इस्तेमाल किया जाता है | कई देश डीजल और पेट्रोल की गाड़ियां छोड़कर इलेक्ट्रिक वहीकल के ऊपर ही काम कर रहे हैं, तो ऐसी स्थिति में आने वाले समय में लिथियम की मांग और भी ज्यादा बढ़ेगी लेकिन चिंता का विषय यह है कि दुनिया में लिथियम के सीमित ही भंडार है 2021 में इन्वेस्टमेंट बैंक ने एक रिपोर्ट जारी किया था जिस रिपोर्ट के मुताबिक लिथियम में के भंडार 2025 तक खत्म हो सकते हैं। यह एक बहुत ही चिंता का विषय है तो इसके ऊपर हम इस पोस्ट में आपके साथ कुछ सवाल और उनके जवाब लेकर आए हैं।

सबसे पहला सवाल क्यों जरूरी है बैटरी

तो यह सबको पता है कि एनर्जी बिजली स्टोर करने के लिए हम बैटरी का प्रयोग करते हैं ,इसके बाद इस्तेमाल करते हैं। बैटरी के इतिहास की बात करें तो दुनिया की सबसे पहली जो बैटरी बनाई है वह आज से 200 साल पहले बनाई गई थी लेकिन वह वाली बैटरी इतनी पावर स्टोर नहीं करती थी। उसके बाद 1830 में लेड एसिड बैटरी बनाई गई,लेकिन जो लेड एसिड बैटरी है यह सबसे ज्यादा चलती है आज भी, लेकिन यह काफी भारी होती है लिथियम बैटरी के मुकाबले। आज से 200 साल पहले एक कार बनाई गई थी उसमें भी लेड एसिड बैटरी का इस्तेमाल किया गया था तो जिसके कारण वह का कामयाब नहीं हुई थी बैटरी के इतिहास में महत्वपूर्ण मोड़ 1980 में आया जब लैपटॉप और मोबाइल फोन के लिए लिथियम आयन बैटरी बनने लगी। पहले के मुकाबले इनका वजन काफी कम था और लेड एसिड बैटरी के मुकाबले यह ज्यादा एनर्जी स्टोर्ड करती थी, तो इसके बाद विज्ञानको ने यह सोचा कि क्यों ना यह वाली बैटरी से इलेक्ट्रिक कार बनाई जाए ,तो विज्ञानको का यह सपना सच हो गया जब उन्होंने यह वाली लिथियम बैटरी से कार बनाकर उसको कामयाब कर दिया। ग्रीन एनर्जी की जरूरतों को पूरा करने के लिए लिथियम बहुत ही जरूरी है, लेकिन इनके भंडार काफी कम है रिपोर्ट के मुताबिक अगले 3 सालों तक लेकिन खत्म हो जाएगा। क्योंकि इसका खनन बहुत ज्यादा हो रहा है आने वाले समय में हमें इसके और भी स्रोत ढूंढने होंगे।

लिथियम के सबसे ज्यादा ज्यादा भंडार कहां पर पाए जाते हैं

दुनिया में सबसे बड़ा लिथियम का भंडार चिली में है इसके अलावा अर्जेंटीना और ऑस्ट्रेलिया में भी इसका खनन होता है, क्योंकि अर्जेंटीना और चिली के बीच कुछ ऐसी झील हैं जो अब सूख चुकी हैं। इन झीलों का खारा पानी अब नमक में तब्दील हो चुका है। इसे साल्ट फ्लैट्स कहते हैं चिल्ली की सफेद दिखने वाले मैदानों में लिथियम के बड़े-बड़े भंडार है। यह वाली नमक की परत के नीचे खारा पानी मौजूद है जिसे ड्रिलिंग के जरिए निकाला जाता है। और इसको साथ में बनाएं बड़े बड़े तालाबों में फैला दिया जाता है। इस खारे पानी में लिथियम काफी मौजूद रहते हैं और उसके बाद वाष्पीकरण के दौरान पानी सूख जाता है और लिथियम उसमें से निकाला जाता है लिथियम निकालने के बाद उसको रिफाइंड करने के बाद इसका निर्यात किया जाता है। चिल्ली के यह वाली मैदान कंपनियों को काफी आकर्षित करते हैं ,लेकिन इसकी खनन से जुड़ी अलग समस्याएं हैं क्योंकि जहां पर पानी बहुत ही कम है यहां पर रहने वाले आदिवासी समुदाय इन ही सीमित जल स्रोतों के ऊपर निर्भर है , और लिथियम के खनन के कारण जहां पर पानी का लेवल और नीचे चला गया है। जिनके कारण यह आदिवासियों को पानी के लिए और भी ज्यादा मेहनत मशक्कत करनी पड़ रही है, एक और साल्ट फ्लैट्स के आसपास रहने वाले लोग लिथियम के खनन का काफी विरोध कर रहे हैं और दूसरी तरफ राजनेता इसमें उलझे हुए हैं कि खनन से मिलने वाला लाभ किसको होना चाहिए और यहाँ रहने वाले लोग यह कह रहे हैं के खनन पर प्राइवेट कंपनियों का नहीं सरकार का कब्जा होना चाहिए ताकि इनका लाभ वहां के लोगों को मिल सके। अगर हम दूसरी तरफ देखें तो दुनिया ग्रीन एनर्जी की तरफ बढ़ रही है जिसके कारण लिथियम मांग भी बढ़ रही है क्योंकि एक तरफ दुनिया में कार्बन खत्म करने के लिए इलेक्ट्रिक वाहनों को उत्साहित करना है। और दूसरी तरफ लिथियम के भंडार भी खोजने है। इसके बाद अगर हम बात करते हैं चीन की जो सबसे बड़ा उपभोक्ता बाजार है।

लिथियम बाजार में चीन का क्या महत्व है ?

चीन दुनिया दुनिया भर में इस्तेमाल होने वाली हर 10 बैटरी में से 4 बैटरी का इस्तेमाल करता है इसके उत्पादन में भी चीन दूसरों से आगे है। दुनिया भर में कुल उत्पादन का 77% चीन में उत्पादन होता है, आखिर चीन के कब्जे में इतना बड़ा भंडार क्यों है ? चीन ने 2001 में ही इसके ऊपर काम करने की योजना बना ली थी साल 2002 में चीन ने इलेक्ट्रिक कारें बनाने की योजना शुरू की थी चीन ने 20 साल पहले ही यह योजना बना ली थी चीन को पहले से ही पता था ,इसलिए उसने अर्जेंटीना और ऑस्ट्रेलिया के खनन में अपना निवेश कर दिया। 2021 में एक शिखर सम्मेलन में 40 देशों ने 2040 तक डीजल और पेट्रोल कारों की बिक्री बंद करने को सहमत हुए , लेकिन चीन ने पहले ही निवेश करने के कारण दूसरों को लिथियम की सप्लाई प्रभावित कर रही है और दूसरा पूरी दुनिया में चीन की बड़ी बैटरी को पसंद किया जा रहा है। 2015 से पहले जापान की बनी हुई लिथियम बैटरी को सबसे अच्छी माना जाता था लेकिन 2015 के बाद चीन में बनी हुई लिथियम बैटरी जापान से भी आगे निकल चुकी है। चीन के निवेश के कारण टेस्ला जैसी कंपनी ने भी अपनी फैक्ट्री चीन में लगा दी है चीन के बारे में हम कह सकते हैं कि जहां पर उत्पादन भी हैं और उपभोक्ता भी है। दूसरी तरफ अमेरिका की बात करें तो वहां पर ऐसा नहीं है क्योंकि वहां पर कार तो बन रही है लेकिन कारों की बैटरी चीन से ही मंगवाई जा रही है। अमेरिका और दूसरे देशों के लिए यह सबसे बड़ी चुनौती है। इसका एक हल हो सकता है कि चीन से आयात की गई बैटरी को दूसरे मुल्क रीसायकल कर सके , लेकिन ऐसा करना अब तक संभव नहीं हो पाया है। अभी की बात करें तो कच्चे माल के लिए संघर्ष इतना तेज नहीं है अभी से कच्चे माल की व्यवस्था करनी होगी या फिर कोई विकल्प खोजना होगा 2012 में दुनिया भर में करीब 130000 इलेक्ट्रिक कारें बेची गई 2020 तक यह आंकड़ा बढ़कर 30 लाख हो गया 2021 में 66 लाख पहुंच गया। जानकारों का मानना है कि यह आने वाले समय यह बाजार 100 अरब डालर से ज्यादा का होगा।

जो देश इसका हिस्सा बनना चाहते हैं उनके पास फिर क्या विकल्प होगा ?

लिथियम को रिफाइंड सबसे ज्यादा चीन में किया जाता है, और बैटरी बनाने में भी पूरी दुनिया में चीन ही आगे है। ऐसे में अगर चीन ने कीमतें बढ़ाई तो पूरी दुनिया मुश्किल में पड़ सकती है। पर सवाल फिर यही आता है कि क्या लिथियम का कोई विकल्प है, और धातु से बैटरी बन सकती हैं ,लेकिन सब में कोई ना कोई कमी है, लेकिन लिथियम में बैटरी बनाने की खास वजह है। अभी ऑटो इंडस्ट्री में हाइड्रोजन फ्यूल का भी इस्तेमाल बढ़ा है लेकिन इससे अधिक उम्मीद लगाना संभव नहीं ,क्योंकि हाइड्रोजन काफी महंगा है और ज्यादा ऊर्जा भी स्टोर नहीं किया जा सकता, आज से 10 साल पहले लिथियम बैटरी काफी महंगी होती थी लेकिन आज यह 90 फ़ीसदी तक इनके दाम गिर चुके हैं। जितने भी ऑटो इंडस्ट्री है जैसे इलेक्ट्रिक कार उसके अंदर सिर्फ लिथियम बैटरी ही कामयाब रहेगी और लिथियम का सबसे जो ज्यादा भंडार है वह सिर्फ चीन के पास ही है जिस तरह से सोलर पैनल बनाने में चीन सबसे आगे है इसी तरह से ही लिथियम बैटरी में भी चीन आगे ही रहेगा। अमेरिका को अगर इसमें ज्यादा हिस्सेदारी चाहिए तो चीन से ज्यादा निवेश करना होगा जानकारों का मानना है कि अभी लिथियम के भंडार कुछ सालों तक ही चलेंगे, लेकिन समय-समय पर इसकी खोज की जाएगी और नई तकनीक के जरिए इस को ज्यादा लंबे समय तक चलाया जा सकता है। लेकिन पश्चिमी मुल्क भी इस ऊपर काम रहें हैं लेकिन पश्चिमी मुल्क भी पीछे नहीं रह रहे जैसे कि टैस्ला अमेरिका में बैटरी बनाने के लिए गीगाफैक्ट्री का निर्माण कर रहा है इसी तरह से ब्रिटेन में भी लिथियम के भंडार मिले हैं वहां पर भी गीगाफैक्ट्री बनाने की योजना है। लेकिन भविष्य में ऊर्जा की अपनी जरूरतों को पूरा करने के लिए बड़े बड़े मूलखों को चीन के ऊपर ही निर्भर रहना पड़ेगा क्योंकि यह काफी लंबी रेस है, और काफी समय इसमें लग सकता है। दुनिया भर के कार निर्माताओं को चीन में बनी बैटरी ऊपर ही काम चलाना पड़ेगा।

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